संत इन्द्रदेवजी महाराज
||ओ३म् || गुरूजी का जीवन परिचय ||ओ३म्||
परम पिता परमेश्वर की असीम अनुपम कृपा से गुरुवर्य युगप्रवर्तक क्रांतिकारी
राष्ट्रीय संत परम पूज्य श्री इन्द्रदेवजी महाराज प्रारंभ से ही प्रभु के
सिद्धांतो पर चलते हुए ऋषि मुनियों के पथ का अनुसरण करते हुए अपने अथाह
परिश्रम, दिन-रात की मेहनत और तप-तपस्या के द्वारा यज्ञ-हवन, प्रवचन, कथा –
सत्संग आदि के माध्यम से वैदिक आर्य हिन्दू धर्म का प्रचार – प्रसार, बच्चो
एवं युवाओ को राष्ट्रसेवा हेतु प्रेरणा प्रदान करना, मानव में मानवता निर्माण
करना, व्यसन-मुक्त अभियान, बेटी-बचाओ बेटी पढाओ अभियान, तनाव-मुक्त अभियान,
रोग-मुक्त अभियान (योग-प्राणायाम और नाड़ी परीक्षण द्वारा आयुर्वेद का विस्तार
करना), संस्कारित शिक्षण सेवा, वायुमंडल शुद्धिकरण (जड़ी बूटियों के द्वारा
वायुमंडल शुद्धिकरण के रूप मे यज्ञ-हवन सेवा), वृक्षा-रोपण, गौमाता का
पालन-पोषण हेतु गौशाला, वृद्ध माता-पिताओ के सेवार्थ वृद्धाश्रम आदि अनुष्ठान
अनेक वर्षो से चलायें जा रहें है |
भगवान श्री कृष्ण की लीलाओ से पावन हुई मथुरा नगरी मे पिताजी श्री किशन जी और माताजी श्री हरदेवी जी के सुपुत्र के रूप में 2 फरवरी 1976 को गुरुजी का जन्म हुआ | मात्र 3 वर्ष की उम्र में ही गुरुजी की माताजी का निधन होने से उन्हे मात्र छाया से वंचित रहना पड़ा |
आर्ष गुरुकुल एटा, उत्तर प्रदेश में वैदिक गुरूकुलम पद्दति से शिक्षा प्राप्त की | अल्प आयु मे ही अपने गुरु जनों की आज्ञा अनुसार एकाग्रता से अध्ययन कर दर्शन, महाभारत और व्याकरण आदि विषयो मे पूर्ण अध्ययन कर महर्षि पाणिनी, अष्टाध्याय, व्याकरणाचार्य, निरुप्त निकुंठ, वेद दर्शन वेदाचार्य, आयुर्वेदाचार्य, दर्शनाचार्य, महाभाष्य एवं भागवताचार्य का गहन अध्यन किया.
उसके पश्चात परम पूज्य गुरूजी द्वारा अनेको वर्षो से प्रवचन, सत्संग, श्रीवेद कथा, श्रीगणेश पुराण, श्रीराम कथा, श्री मद्भागवत कथा, श्रीमद देवी भागवत कथा , शिव महा पुराण, श्रीकृष्ण कथा, आदि कथाओ के माध्यम से भारत एवं अन्य देशो के विभिन्न प्रांतो मे परम पूज्य गुरूजी के प्रवचनो की अध्यात्म गंगा निरंतर अविरल बह रही है जिसमें करोड़ो भक्तजन गोता लगाते हुए अपने जीवन का कल्याण कर रहे है |
परम पूज्य गुरुदेव को सेवा, साधना एवं धर्मोत्थान हेतु प्राप्त विशिष्ट उपाधियाँ
परम पूज्य संत श्री इन्द्रदेवजी महाराज का संपूर्ण जीवन मानव सेवा, सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार, एवं राष्ट्र व संस्कृति के उत्थान को समर्पित रहा है। गुरुदेव ने समाज के हर वर्ग के कल्याण हेतु अनेकों सेवा प्रकल्पों का संचालन कर राष्ट्र निर्माण में अपना अद्वितीय योगदान दिया है।
🕉 1. सिंहस्थ महाकुंभ नासिक 2015 में प्राप्त विशेष उपाधि:
तपोनिधि श्री पंचायती अखाड़ा आनंद, त्र्यंबकेश्वर, नासिक, महाराष्ट्र के अध्यक्ष स्वामी सागरानंद सरस्वती जी एवं सभी अखाड़ों के पूज्य संत-महंतों द्वारा परम पूज्य गुरुदेव को प्रदान की गई दिव्य पदवी:
🔸 "यज्ञपीठाधीश्वर धर्मसम्राट विद्यावाचस्पति श्री श्री 1008 श्री महंत स्वामी इन्द्रदेवेश्वरानंद सरस्वती जी महाराज"
यह पदवी उनके जीवन के वैदिक, यज्ञीय, और आध्यात्मिक योगदान को सम्मानित करती है।
🕉 2. महामण्डलेश्वर पट्टाभिषेक महोत्सव – 6 जून 2016:
पंचायती श्री निरंजनी अखाड़ा द्वारा आयोजित इस भव्य महोत्सव में देशभर के संत समाज की उपस्थिति में गुरुदेव का पट्टाभिषेक कर उन्हें
"महामण्डलेश्वर" की सर्वोच्च संत पदवी से सम्मानित किया गया।
विशेष उपस्थिति में:
🔹 योगऋषि स्वामी रामदेव जी महाराज
🔹 श्री नरेंद्र गिरी जी महाराज – अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद अध्यक्ष
🔹 आचार्य महामण्डलेश्वर बालकानंद गिरी जी महाराज
🔹 श्री रामानंद पुरी जी महाराज
🔹 महामण्डलेश्वर दिव्यानंद सरस्वती जी महाराज
🔹 महामण्डलेश्वर कैलाशानंद गिरी जी महाराज
🔹 अन्य अनेक महामण्डलेश्वरगण, संत-महंत एवं अखाड़ों के धर्माधिकारी
🎓 3. अंतरराष्ट्रीय मानद उपाधि – Ph.D. (Honoris Causa):
कोविड-19 जैसी वैश्विक महामारी के कठिन समय में, जब पूरा विश्व संकट में था, उस समय
संत श्री इन्द्रदेवजी महाराज ने वृन्दावन
की पावन धरा पर अपनी सेवा और करुणा का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। उन्होंने मानवता के प्रति अपनी गहन संवेदना और समर्पण को कर्म रूप में परिवर्तित करते हुए:
🔸 भोजन वितरण :
🔸 दवा एवं चिकित्सा सहायता:
🔸 मानव सेवा के अन्य आयाम:
इस वैश्विक सेवा और समर्पण को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता देते हुए
The American University for Global Peace (USA) द्वारा 8 मई 2024 को श्री इन्द्रदेवजी महाराज को
"Doctor of Philosophy – Humanity & Spiritual Education" की उपाधि से विभूषित किया गया । यह उपाधि उनके अद्वितीय मानव सेवा, आध्यात्मिक जागरण, एवं कोविड-काल में समाज सेवा के लिए सम्मान स्वरूप दी गई है।
यह न केवल उनकी साधना और सेवा का सम्मान है, बल्कि भारतीय संस्कृति, सनातन परंपरा और मानव कल्याण के प्रति उनकी निष्ठा का प्रतीक भी है।
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